श्री मुरलीधर दुबे

 

कोरोना संक्रमण ’महामारी‘ के कारण आज पूरा विश्व त्रस्त है। वर्ष 2020 का आज तक का समय एवं आगामी कई माह सभी इससे प्रभावित रहेंगे। वैक्सीन की सम्भावना वर्ष के अन्त तक अथवा अगले वर्ष तक ही सम्भावित है। इस ’महामारी‘ के कारण ही हमारे ट्रस्ट की आमसभा की बैठक ’आन – लाइन‘ हो रही है। मनुष्य के जीवन में अनेक तरह के कष्ट एवं कठिनाइयां आतीहैं। यदि जीवन का सार देखा जाय तो मानव जीवन अनेक चुनौतियों, कष्टों एवं अथल पुथल से अधिक भरा होता है, सुख एवं शान्ति के समय कम आते हैं। कदाचित कष्टों एवं कठिनाइयों का आना एक अवश्यम्भावी घटना है जिसे हम चाहकर भी नहीं रोक सकते हैं। इनके लिए कुछ हद तक हम अपने प्रारब्ध को जिम्मेदार ठहराते हैं परन्तु बहुत कुछ हमारे नकारात्मक विचार, यथा – द्वेष भावनाएं, क्रोध, लालच, पारिवारिक लगाव आदि जिम्मेदार होते हैं। धार्मिकता एवं आध्यात्मिकता हमारे नकारात्मक विचारों को नियंत्रित कर हमारे अन्दर सकारात्मक विचार, यथा – दया, करूणा, शान्ति, सहिष्णुता, क्षमा, सेवा आदि विकास में सहायक होती है। धार्मिक विचार; चाहे किसी भी धर्म का क्यों न हो, जब तक वह मानव के अन्दर शाश्वत आध्यात्मिक नैतिक मूल्यों को स्थापित करने में सहायक है, तब तक वह समाज के लिए उपयोगी है, अन्यथा यदिवह नकारात्मक विचारों को उकसाने में मददगार है तो वह त्याज्य है। अब प्रश्न यह उठता है कि शाश्वत मूल्यों का विकास व्यक्ति के अन्दर कैसे किया जाय। सामूहिक रूप से तो इसे बच्चों की शिक्षा के माध्यम से किया जा सकता है, परन्तु व्यक्तिगत तौर पर व्यक्ति के आत्मचेतना को जागृत कर। आत्म चिन्तन, ध्यान एवं गुरू के बताये मार्ग का अनुसरण कर इस चेतना को जागृत किया जा सकता है। ध्यान के अनेक तरीके हैं परन्तु प्रमुख रूप से चित्त को शान्त कर अपने अन्दर देखना अधिक प्रचलित है। इसके लिए अपने श्वासों के आवागमन को शान्त चित्त से देखना, दीपक पर ध्यान लगाना, मन्त्र जप आदि अनेक माध्यम हैं। परन्तु ध्यान में हमें अपने भूतकाल की घटनाओं, यादों एवं बातों की तरफ भटकाव रोकना होता है, उसी प्रकार भविष्य की चिन्ताओं, भय, योजनाओं, सम्भावनाओं एवं आशाओं से भी ध्यान हटाकर वर्तमान में केन्द्रित करने का अभ्यास करना होता है। एक लम्बे अन्तराल की साधना के उपरान्त ही चित्त में शान्ति एवं सुख का अनुभव प्रारम्भ होता है जो किसी भी विषम परिस्थिति को सहने की शक्ति देता है। इससे नकारात्मक विचार नष्ट होने लगते हैं एवं सकारात्विचारों तथा नैतिक मूल्यों का प्रादुर्भाव होने लगता है। इस आत्म शक्ति के विकास से ’महामारी‘ से भी लड़ा जा सकता है आत्महत्या, पारिवारिक विघटन, आपराध आदि सामाजिक बुराइयों पर भी नियंत्रण किया जा सकता है।
‘जैसा कि आप सब अवगत हैं वर्ष 2020 एवं 2021 कोरोना महामारी से प्रभावित रहा है। जीवन के हर क्षेत्र में गतिविधियां जैसे ठहर सी गई थी। सामाजिक मिलना जुलना , शादी – विवाह , धार्मिक उत्सव का आयोजन , तीज – त्योहार , आवागम सभी पर इसका बुरा प्रभाव पड़ा। सभी क्षेत्रों में एक ठहराव की स्थिति आ गयी थी, परन्तु हमारे सशक्त संचार माध्यमों , इंटरनेट सेवाएं, गूगल, व्हट्सएप, फेसबुक आदि आधुनिक सुविधाओं ने न केवल जीवन में गतिशीलता किसी न किसी रूप में कायम रखी, बल्कि कई क्षेत्रों में नये – नये विचार एवं व्यवस्था कों भी विकसित की। फलस्वरूप सूचनाओं का आदान – प्रदान, विचारों का प्रेषण, कार्यालयों की कार्य प्रणाली ( Work from home) , बच्चों को शिक्षा (online) आदि कुछ नये तरीके विकसित हुए। आर्थिक गतिविधयों ने भी अपना आयाम बदला, फलस्वरूप कुछ प्रारम्भिक ठहराव के बाद अब आर्थिक मंदी का दौर समाप्तप्राय है। 125 करोड़ की आबादी को टीका लगाने का कार्य भी प्रशासनिक दक्षता का द्योतक है। हमने अपने अभिन्न करीबी लोगों को इस दौर में विशेषकर अप्रैल – मई 2021 के समय में खोया। हमारे अपने ट्रस्ट के एक मूर्धन्य विद्वान व उत्कट सहयोगी को भी हमने असामयिक ही खो दिया, जिससे ट्रस्ट को एवं उनके परिवार को अपूरणीय क्षति हुई। सभी सदस्यों का कुशलक्षेम बनाए रखने में गुरुजी की विशेष कृपा एवं आशीर्वाद रहा, उन्होंने सभी सदस्यों के आध्यात्मिक स्तर को ऊचां करने हेतु ’टेलीपैथी‘ माध्यम का भी सहार लिया। हमारी इस वर्ष की ’आमसभा‘ की बैठक भी (online) हो रही है। इस संकट के दौर में भी ’सचिवः का सहयोग भी सराहनीय रहा है।
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