श्री मुकेश झा

सनातन संस्कृति अपने आप में एक विशाल वृक्ष की भांति है, उसकी जड़ें दया से भरी हुई हैं, उससे उत्पन्न फल करुणामयी है, उसके नीचे बैठने से दया रूपी ममता की छांव मिलती है। भांति – भांति के पंक्षी, जीव – जन्तु, इस सनातन वृक्ष से अपना पोषक तत्व प्राप्त कर प्रकृति में भागीदारी प्रदान करते हैं। ऐसे विशाल सनातन संस्कृति को मैं कोटि – कोटि प्रणाम करता हूं! यह सनातन संस्कृति गुरू की भांति है, जो हमें विविध ज्ञान प्रदान करती है, यह करुणामयी है, यह दया, क्षमा आदि गुणों के भण्डार से भरी
पड़ी है।
(विशेष – उपरोक्त अंश ’वार्षिक समारोह (11.10.20) से साभार लिया गया है।)
  • ’अज्ञानाश्रय ट्रस्ट‘ के वैचारिक मंच को बहुमुखी सामाजिक मुख्य धारा से जोड़ने का प्रयास –
ट्रस्ट के समस्त सदस्यों को सर्वधर्म के तहत मिली जुली गंगा यमुना की तहजीव पर समाज के मुख्य धारा में अपना विचार सर्वधर्म पर विचार देना चाहिए।
  • ’सनातन धर्म‘ से ’सर्वधर्म समभाव‘ की परिकल्पना मानवहित में की जा सकती है-
सर्वधर्म समभाव की परिकल्पना ट्रस्ट का उद्देश्य होना चाहिए।
  • पूर्व की ’राजाश्रय व्यवस्था‘ और वर्त्तमान की ’राजनैतिक व्यवस्था‘ का जनमानस में उपयोग –
पूर्व कालीन इतिहास से हमने कुछ नहीं सीखा है, पहले राजा थे, अब नेता। देश की स्थिति बत से बत्तर हो चुकी है।
  • धर्म/अध्यात्म से राष्ट्रीय और विश्व स्तर पर रचनात्मक मानवीय समाधान की सम्भावना –
धर्म को मानव समाज में अगर विकसित करना है तो ’माता पिता और गुरु‘ से पाठ पढ़नी होगी, तभी मानव समाज का विकास कर पायेंगे।
– मुकेश झा(आजीवन न्यासी सदस्य)
(विशेष- उपरोक्त वक्तव्य/विचार वार्षिक समारोह/सामान्य बैठक (05.11.21 – 20.11.21) का आवश्यक अंश है। )