श्री मुरलीधर दुबे

हमारा ट्रस्ट अपने छोटे से आयाम में सीमित संसाधनों द्वारा मानव एवं समाज के आध्यात्मिक उन्नयन में सक्रिय है। आज जबकि समाज में एक भौतिक अतिवाद का तर्क प्रचलित हो रहा है, और सभी शाश्वत मूल्यों को हर ओर में चुनौतियां मिल रही है, हमारे समाज को एक मूठ में पिरोकर बांधें रखना काम के समय ही नई चुनौती दिखाई दे रही है। राजनैतिक स्वार्थपरता समाज को विखडित करती दिखाई दे रही है। इससे कैसे बचा जाय , यह एक ज्वलंत मुद्दा बन गया है। ’अनेकता में एकता‘ की सामाजिक विशेषता में घुन लगता जा रहा है। इसे राष्ट्रवाद एवं समाज के प्रगति के पथ पर कैसे मोड़ा जाए, यह हमारे भविष्य की चिंता का विषय बन गया है। यदि समय रहते इससे प्रभावी ढगं से निपटा नहीं गया तो हम पुनः मध्ययुगीन काल की सामाजिक व्यवस्था की ओर अग्रसर होंगे, जिसका दुष्परिणाम भयावह होगा। कदाचित इसी भाव से हमारे एजेण्डा के बिन्दु संख्या -7 में यह बिन्दु रखा गया है कि हम कैसे बहुमुखी? वैचारिक मुख्यधारा का राष्ट्र एवं समाज के उत्थान में प्रयोग कर सकते हैं। इस क्षेत्र में सतत् चिन्तन एवं लेखन की आवश्यकता है। निश्चय भारत की सनातन परम्परा एवं आध्यात्मिक तथा दार्शनिक सम्पन्नता हमें रास्ता दिखाने का कार्य करेगी। इस क्षेत्र में ट्रस्ट का प्रयास सराहनीय है। आवश्यकता है, इसे व्यापकता का रूप प्रदान करने की। अंत मे हम सभी माननीय सदस्यों के स्वस्थ्य जीवन , दीर्घायु होने एवं बौद्धिक रूप से और सक्रिय रहने की कामना करते हैं‘। शुभकामनाओं सहित,

– अध्यक्ष/प्रबंधक न्यासी सदस्य,
(विशेष – उपरोक्त अंश ’वार्षिक समारोह (11.10.20) से साभार लिया गया है।)

 

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