श्री सौरभ पाण्डेय

भौतिकता और आध्यात्मिकता के मध्य मानवता का विकास करने हेतु नैतिक मूल्यों को समाज में पुनःस्थापित किया जाय। मनुष्यता का समाज में सभी लोग पालन करें। विज्ञान एवम् अध्यात्म के सहयोग से मानव सभ्यता के लिए उत्पन्न हो रहे खतरों से निजात हेतु समाधान किया जाये।
(विशेष – उपरोक्त अंश ’वार्षिक समारोह (11.10.20) से साभार लिया गया है।)
  • ’अज्ञानाश्रय ट्रस्ट‘ के वैचारिक मंच को बहुमुखी सामाजिक मुख्य धारा से जोड़ने का प्रयास –
विभिन्न देश में रहने वाले धर्मावलम्बियों एवं उसके अनुयायियों के ट्रस्ट आध्यात्मिक विकास एवं वैचारिक समरसता हेतु ट्रस्ट के मंच का उपयोग मानवहित में करने के लिए विचार करना चाहिए।
  • ’सनातन धर्म‘ से ’सर्वधर्म समभाव‘ की परिकल्पना मानवहित में की जा सकती है-
सनातन धर्म सर्वधर्म समभाव की परिकल्पना मानवहित में की जा सकती है। सनातन धर्म सभी मानव जाति, पशु पक्षी एवं सम्पूर्ण प्रकृति के हित हेतु मार्ग प्रशस्त करता है। गीता का ग्रंथ भी सर्वधर्म समभाव एवं सभी प्राणियों का मार्ग दर्शन करता है।
  • पूर्व की ’राजाश्रय व्यवस्था‘ और वर्त्तमान की ’राजनैतिक व्यवस्था‘ का जनमानस में उपयोग –
वर्तमान लोकतान्त्रिक व्यवस्था , यदि सभी लोग मिलकर ईमानदारी से मानवहित एवं राष्ट्रहित का ध्यान केन्द्रित करते हुए पूर्ण मनोयोग एवं व्यक्तिगत रूप से लागू की जाए तो वह पूर्व राजाश्रय व्यवस्था से ज्यादा हितकारी होगी।
  • धर्म/अध्यात्म से राष्ट्रीय और विश्व स्तर पर रचनात्मक मानवीय समाधान की सम्भावना –
धर्म एवं अध्यात्म से राष्ट्रीय एवं विश्व स्तर पर रचनात्मक मानवीय समाधान हो सकता है। सभी प्रकार की सभ्यताएं धर्म एवं अध्यात्म के मार्ग पर चलकर ही विकास की सतत् अवधारणा को सही प्रकार से क्रियान्वित कर पाती हैं। व्यक्ति एवं समाज धर्म एवं अध्यात्म से मार्गदर्शन प्राप्त कर विशिष्ट गुणों का निर्माण करता है जो सम्पूर्ण प्रकृति के हित में कार्य करने हेतु आवश्यक होता है।
– श्री सौरभ पाण्डेय (आजीवन न्यासी सदस्य)
(विशेष- उपरोक्त वक्तव्य/विचार वार्षिक समारोह/सामान्य बैठक (05.11.21 – 20.11.21) का आवश्यक अंश है। )