डा0 दयानन्द श्रीवास्तव

दया, करुणा, प्रेम और परोपकार आदि से युक्त व्यक्ति, भौतिकता और आध्यात्मिकता से जुड़ने का प्रयास कर सकता है।
(विशेष – उपरोक्त अंश ’वार्षिक समारोह (11.10.20) से साभार लिया गया है।)
  • ’अज्ञानाश्रय ट्रस्ट‘ के वैचारिक मंच को बहुमुखी सामाजिक मुख्य धारा से जोड़ने का प्रयास –
मेरे विचार से शोसल मीडिया (फेसबुक और ट्टिर आदि) पर न्यास को अपनी उपस्थिति रखनी चाहिए।
  • राष्ट्रीय और विश्व स्तर पर ’व्यापक जनमानस और राजनैतिक व्यवस्था के मध्य ’प्रशासनिक‘ और न्यायिक व्यवस्था‘ का अपराध मुक्ति के लिए रचनात्मक स्वरूप –
    सम्भव प्रतीत नहीं होता परन्तु एक समान व्यवहार करके सभी प्रकार की व्यवस्थओ में अपराध के प्रतिशत को कम किया जा सकता है।
  • ’सनातन धर्म ‘ से ’सर्वधर्म समभाव‘ की परिकल्पना मानवहित में की जा सकती है-
किया जा सकता है, परन्तु विभिन्न सम्प्रदायों , मान्यताओं पदों के लोगों को वैचारिक मतभेद पर स्वस्थ चर्चा करनी होगी।
  • पूर्व की ’राजाश्रय व्यवस्था‘ और वर्तमान की ’राजनैतिक व्यवस्था‘ का जनमानस में उपयोग -जन साधारण को सुलभ न्याय एवं पक्षपात रहित व्यवस्था देनें पर सभी तन्त्र समाज के लिए विकासोन्मुख होंगे ।
  • धर्म/अध्यात्म से राष्ट्रीय और विश्व स्तर पर रचनात्मक मानवीय समाधान की सम्भावना –
सम्भव है (धर्म/अध्यात्म द्वारा), यदि समाधान हेतु निस्वार्थ भाव उत्पन्न किया जा सके। समस्या यह है कि सभी के लिए धर्म/अध्यात्म की परिभाषा अलग – अलग है। यही अलग अलग परिभाषाएं समस्याओं के समाधान का अन्य विकल्प प्रकट करती है।
– डा0 दयानन्द श्रीवास्तव(आजीवन न्यासी सदस्य)
(विशेष- उपरोक्त वक्तव्य/विचार वार्षिक समारोह/सामान्य बैठक (05.11.21 – 20.11.21) का आवश्यक अंश है। )