भौतिकता और आध्यात्मिकता से जुड़ने के लिए व्यक्ति को दोनों को समझने का प्रयास करना होगा। ’दया, करुणा, प्रेम, आस्था और परोपकार‘ आदि इस कार्य में विशेष सहयोगी सिद्ध हो सकते हैं।
(विशेष – उपरोक्त अंश ’वार्षिक समारोह (11.10.20) से साभार लिया गया है।)
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’अज्ञानाश्रय ट्रस्ट‘ के वैचारिक मंच को बहुमुखी सामाजिक मुख्य धारा से जोड़ने का प्रयास –
अज्ञानाश्रय ट्रस्ट के मचं को थोड़ा और विकसित करके बड़े पैमाने पर लाना चाहिए। साल में एक बार इसकी संगोष्ठी बड़े पैमाने पर करनी चाहिए। ट्रस्ट के वैचारिक मंच को विविध मुख्यधारा से जोड़ने के लिए विविध इलेक्टा्रनिक सांधनों (बेवसाईट, फेसबुक, यू ट्यूब व मोबाइल आदि) का भरपूर उपयोग करना चाहिए। इसके साथ ट्रस्ट के सभी सदस्यों को चाहिए कि वह अपने अपने परिवेश में इसके साहित्य और दिशा निर्देश का प्रचार प्रसार करे।
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राष्ट्रीय और विश्व स्तर पर ’व्यापक जनमानस और राजनैतिक व्यवस्था के मध्य ’प्रशासनिक‘ और न्यायिक व्यवस्था‘ का अपराध मुक्ति के लिए रचनात्मक स्वरूप –
राष्ट्रीय और विश्व स्तर पर ’व्यापक जनमानस और राजनैतिक व्यवस्था के मध्य ’प्रशासनिक‘ और न्यायिक व्यवस्था‘ को तभी एक दूसरे का समन्वयात्मक क्रम पूरक बनाया जा सकता है जब ’व्यापक जनमानस और राजनैतिक व्यवस्था के मध्य भी एक समन्वयात्मक सोच विकसित हो सके। किसी भी राष्ट्र में जब तक विविध व्यवस्थाओं के मध्य ईमानदारी, परोपकार और विविध मानवीय संवेदनाएं विकसित होकर एक दूसरे का पूरक नहीं बनेगी और विविध पत्रकारिता उन सबका संवाहक/वाहन नहीं बनेगा तब अपराध की कमी को लेकर र कुछ भी कहना एक अदद बेमानी होगी।
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’सनातन धर्म‘ से ’सर्वधर्म समभाव‘ की परिकल्पना मानवहित में की जा सकती है-
यह बहुत ही विस्तृत रूप से विचार करने युक्त विषय है। इसके बारे में एक दूसरे के विचारों को आपस में एक साथ बैठकर जोड़ना पड़ेगा। तभी कुछ निष्कर्ष निकल पायेगा । सनातन धर्म में सब कुछ साहित है।
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पूर्व की ’राजाश्रय व्यवस्था‘ और वर्त्तमान की ’राजनैतिक व्यवस्था‘ का जनमानस में उपयोग –
राजधर्म और राष्ट्रधर्म दोनों के उचित नियमों को जोड़कर एक नयी व्यवस्था को समाज में लाना ही समाज और मानवहित में उपयोगी हो सकता है।
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धर्म/अध्यात्म से राष्ट्रीय और विश्व स्तर पर रचनात्मक मानवीय समाधान की सम्भावना –