श्री तरुण कुमार सिंह

  • पूर्व की ’राजाश्रय व्यवस्था‘ और वर्तमान की ’राजनैतिक व्यवस्था‘ का जनमानस में उपयोग –
प्राचीन राजाश्रय व्यवस्था व वर्तमान व्यवस्था में वर्तमान लोकतान्त्रिक प्रणाली श्रेष्ठ है। क्योंकि लोकतान्त्रिक प्रणाली में सरकार का उद्देश्य जनकल्याण होता है और विफलता की स्थिति में जनता को सरकार बदलने का अधिकार है। ’राजाश्रय व्यवस्था‘ में कुछ राजाओं को छोड़कर अधिकांश राजा स्वेच्छाचारी व निरंकुश बन जाते हैं और उनका उद्देश्य जनकल्याण न होकर व्यक्तिगत स्वार्थ बन जाता है। हम राजाश्रय प्रणाली के अच्छे गुणों को लके र लोकतन्त्रात्मक शासन प्रणाली की त्रुटियों को दूर कर सकते हैं। क्योकि अतीत और वर्तमान की जीवन पद्धति व परिस्थितियों में अन्तर है।
  • धर्म/अध्यात्म से राष्ट्रीय और विश्व स्तर पर रचनात्मक मानवीय समाधान की सम्भावना –
धर्म / अध्यात्म व्यक्ति को ईश्वर से जोड़ता है। व्यक्ति के नैतिक गुण , कर्तव्य पालन, प्रेम शक्ति और अहिंसा आदि को प्रस्थापित करता है, जिसके माध्यम से व्यक्ति अपना जीवन अनुशासित रूप में व्यतीत करता है।
किन्तु जब तक विश्व में धर्म/अध्यात्म की एक स्वीकृत परिभाषा नहीं बनती तब तक धर्म संघर्ष का कारण बनता है और समाज को समाधान की बजाय विनाश की ओर ले जाता है। धर्म जब तक व्यक्तिगत है तब तक तो ठीक है किन्तु जब बलात् थोपा जाता है तो वह विध्वंसक हो जाता है। यह भी समाज में देखा जाता है कि धर्म के नाम पर फैली कुरीतियां अधिकांश व्यक्तियों के जीवन पर नकारात्मक प्रभाव डालती है – चाहे ईश्वर या प्राचीन आदर्शों के नाम पर उन पर पर्दा डालने का कितना ही प्रयास क्यों न किया जाये। मानवता के उत्थान के लिए हम प्राचीन आदर्शों व सिद्धान्तों के आधार पर कुरीतियों को स्वीकार नहीं कर सकते।
हमें यह स्वीकारना होगा कि धर्म/अध्यात्म समाज में अपनी भूमिका को निभाने में कहीं न कहीं असफल रहा है। वश्व में मानव कल्याण के लिए हमें वर्तमान परिस्थितियों को स्वीकारना चाहिए क्योंकि वर्तमान से ही भविष्य का मार्ग निकलता है। हमें प्राचीन धर्म, धार्मिक सिद्धान्तों से अलग सिद्धान्त मानव भविष्य को दृष्टिगत रखते हुए बनाने होंगे और इसमें अतीत के गुणों को भी समाहित करना होगा व कुरीतियों से बचना होगा तभी सुखद व शक्तिशाली भविष्य निर्मित होगा।
(विशेष- उपरोक्त वक्तव्य/विचार वार्षिक समारोह/सामान्य बैठक (05.11.21 – 20.11.21) का आवश्यक अंश है। )

 

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