श्री दिनेश कुमार मिश्रा

अपने जीवन में धार्मिक ग्रंथों – गीता, मानस आदि का स्वाध्याय, योग व मानवीय मूल्यों का अपने व्यक्तिगत जीवन में विकास करना, भारतीय संस्कृति की नैतिकता, बन्धुता, सहिष्णुता आदि शिक्षा का जीवन में अपना कर भौतिकता और आध्यात्मिकता के मध्य स्वस्थ्य समाज के निर्माण में हम अपना योगदान दे सकते हैं। मानवीय सोच में नैतिकता, पवित्रता, जीवन शैली सात्विकता अपना कर भावी पीढ़ी को मानसिक अवसाद से बचाने व मानवता के विकास हेतु अपने मानव जीवन पाने के दायित्व का निर्वाह कर सकते हैं। जीवन की सार्थकता व मोक्ष की प्राप्ति दुर्लभ मानव देह में पा सकते हैं।
– दिनेश कुमार मिश्रा (आजीवन न्यासी सदस्य)
(विशेष – उपरोक्त अंश ’वार्षिक समारोह (11.10.20) से साभार लिया गया है।)
  • ’अज्ञानाश्रय ट्रस्ट‘ के वैचारिक मंच को बहुमुखी सामाजिक मुख्य धारा से जोड़ने का प्रयास –
’अज्ञानाश्रय ट्रस्ट ‘ के वैचारिक मंच को बहुमुखी सामाजिक मुख्यधारा को जोड़ने के लिए निम्न विचार प्रस्तुत है- सभी न्यासीगण ट्रस्ट के विचारों का प्रचार प्रसार अपने अपने कार्य और सामाजिक लेखों में कर सकते हैं। इससे धीरे धीरे वैचारिक जागरूकता हो सकेगी और इस सोच में विश्वास रखने वाले ट्रस्ट से जुड़गें।
राष्ट्रीय और विश्व स्तर पर ’व्यापक जनमानस और राजनैतिक व्यवस्था के मध्य ’प्रशासनिक‘ और न्यायिक व्यवस्था‘ का अपराध मुक्ति के लिए
रचनात्मक स्वरूप – राष्ट्रीय और विश्व स्तर पर व्यापक जनमानस और राजनैतिक व्यवस्था के मध्य ’ प्रशासनिक और न्यायिक व्यवस्था ‘ कैसी होनी चाहिए, जिससे विविध अपराध न के बराबर हो, इस पूरी प्रक्रिया में विविध पत्रकारिता का समावेश किस प्रकार का होना चाहिए। इस पर निम्न विचार प्रस्तुत है- इन सभी क्षेत्रों ( प्रशासनिक और न्यायिक व्यवस्था और विविध पत्रकारिता ) में जो भी अधिकारी, प्रतिनिधि, जनप्रतिनिधि व्यवस्था के हिस्सा हैं और इन व्यवस्थाओं को नियंत्रित करते हैं या चलाते हैं उन सभी की प्राथमिकता मानवहितों की संवेदना के साथ सुरक्षा, संवर्द्धन और विकास होना चाहिए। इन सभी व्यवस्थाओं को एक दूसरे का पूरक ही नहीं बल्कि आडिटर भी होना चाहिए। इन सबमें ईमानदारी, संवेदना और पूर्ण निष्ठा के साथ एक अनुशासित क्रम में केवल मानवहितों की रक्षा और विकास के उद्देश्य के लिए यह व्यवस्थाएं जब कार्य करने लगेंगी तब सभी बुराईयां और अपराध पर नियंत्रण पाना सम्भव है। विविध पत्रकारिता भी इस व्यवस्था का एक अहं स्तम्भ है। व्यवस्था की कमियों को उजागर करने में, विकास कराने में विविध पत्रकारिता की प्रमुख भागेदारी हो सकती है। आम जनमानस, समाज और विविध व्यवस्थाओं के बीच सामंजस्य हेतु बनाने में विविध पत्रकारिता की मुख्य भूमिका हो सकती है। वहीं व्यवस्था की सफलता पर उसका प्रोत्साहन भी करना विविध पत्रकारिता का कर्तव्य भी होना चाहिए।
  • ’सनातन धर्म‘ से ’सर्वधर्म समभाव‘ की परिकल्पना मानवहित में की जा सकती है- मेरे विचार से सनातन धर्म से मानवहित में ’सर्वधर्म समभाव‘ की परिकल्पना और अपेक्षा मानवहित में निश्चय ही की जा सकती है। सनातन धर्म आध्यात्मिकता के समावेश के साथ राष्ट्र और विश्व स्तर पर सभी अन्य धर्मों और सामाजिक मान्यताओं को ध्यान में रखते हुए एक सकारात्मक बदलाव लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए सक्षम हो सकता है।
  • पूर्व की ’राजाश्रय व्यवस्था‘ और वर्तमान की ’राजनैतिक व्यवस्था‘ का जनमानस में उपयोग – समय, काल के अनुरूप ’राजाश्रय व्यवस्था‘ की अच्छाइयों, गुणों का, जो कि मानवहित में समय के सापेक्ष लाभप्रद सिद्ध हो, वर्तमान व्यवस्था में समावेश करने का प्रयास करना चाहिए। राजाश्रय व्यवस्था में एक परिवार के पास सत्ता और नियत्रं ण होने से राजा की सोच और साथ ही राजपरिवार के अन्य सदस्यों का समीकरण और सोच का प्रभाव निर्णयात्मक हो सकता है। लोकतान्त्रिक व्यवस्थाओं में सत्ता उसी के पास रहेगी जिसे जनमानस चाहेगी और समर्थन देगी। वर्तमान परिस्थितियों में राजनैतिक व्यवस्था ज्यादा उपयोगी हो सकती है।
  • धर्म/अध्यात्म से राष्ट्रीय और विश्व स्तर पर रचनात्मक मानवीय समाधान की सम्भावना – निश्चय ही धर्म/अध्यात्म से राष्ट्रीय और विश्व स्तर पर रचनात्मक मानवीय समाधान हो सकता है, क्योकि मेरे विचार में धर्म/आध्यात्मिकता का आधार और उद्देश्य ब्रह्माण्ड के सभी अंगों और उसमें रहने, पनपने वाले हर प्राणी , तत्वों की सुरक्षा और संवर्द्धन का है, वह तो मूल कारण और कारक दोनों हो सकता हैं । इसके बिना किन्ही अन्य प्रकार मात्र से राष्ट्रीय और विश्व स्तर पर रचनात्मक मानवीय समाधान होने की सम्भावना सम्भव नहीं के बराबर हो सकती है।
(विशेष- उपरोक्त वक्तव्य/विचार वार्षिक समारोह/सामान्य बैठक (05.11.21 – 20.11.21) का आवश्यक अंश है। )