सभी लोगों को अपने अन्तर्मन में पूर्ण रूप से अपने और दूसरे के प्रति सरलता, संवेदना, निष्पक्षता और सम्मान की सोच एवं भाव रखने का प्रयास करना होगा। भौतिकता से ऊपर सर्वोपरि आध्यात्मिक व्यवस्था है। भौतिक शरीर में समाज में रहते हुए अपने उत्तरदायित्यों का निर्वहन करने का प्रयास करते हुए सजगता के साथ सकारात्मक सोच/भाव के साथ मानवीय मूल्यों का ध्यान रखते हुए गुरु के सानिध्य में उनके द्वारा प्रदत्त आध्यात्मिक मार्ग पर चलने का प्रयास करते रहना चाहिए। अन्तर्मन यदि मानवता का पालन ही न कर सके तो क्या आध्यात्मिक सफलता परिपक्व हो सकेगी? जिन भी कारणों से मानव विभिन्न देश धर्म, आर्थिक, सामाजिक विभाजनों का शिकार हो चुका है और धीरे – धीरे अलग – अलग कारणों से मानव ही मानव का विरोधी बनता जा रहा है, परिजनों से भी दुर्व्यवहार, दुष्विचार, अपना – पराया की धारणा लोगों में कायम हो चुकी है। ऐसी स्थिति में हम सबको भरसक यह प्रयास करते रहना चाहिए कि मूल मानवता के सिद्धान्तों को सही मायने में अपना सके और पालन करने का सतत् सचेत प्रयास करते रहें। अपने साथ – साथ दूसरों के भले के बारे में सोंचे। …अन्यथा जीवन की सार्थकता कहीं न कहीं अधूरी रह सकती है।
(विशेष – उपरोक्त अंश ’वार्षिक समारोह (11.10.20) से साभार लिया गया है।)
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’अज्ञानाश्रय ट्रस्ट‘ के वैचारिक मंच को बहुमुखी सामाजिक मुख्य धारा से जोड़ने का प्रयास –
’अज्ञानाश्रय ट्रस्ट ‘ के वैचारिक मंच को बहुमुखी सामाजिक मुख्यधारा को जोड़ने के लिए निम्न विचार प्रस्तुत है-
सभी न्यासीगण ट्रस्ट के विचारों का प्रचार प्रसार अपने अपन कार्य और सामाजिक ल खो में कर सकते है । इससे धीरे धीरे वैचारिक जागरूकता हो सकेगी और इस सोच में विश्वास रखने वाले ट्रस्ट से जुड़ेंगे ।
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राष्ट्रीय और विश्व स्तर पर ’व्यापक जनमानस और राजनैतिक व्यवस्था के मध्य ’प्रशासनिक‘ और न्यायिक व्यवस्था का अपराध मुक्ति के लिए रचनात्मक स्वरूप –
राष्ट्रीय और विश्व स्तर पर व्यापक जनमानस और राजनैतिक व्यवस्था के मध्य ’ प्रशासनिक और न्यायिक व्यवस्था ‘ कैसी होनी चाहिए, जिससे विविध अपराध न के बराबर हो, इस पूरी प्रक्रिया में विविध पत्रकारिता का समावेश किस प्रकार का होना चाहिए। इस पर निम्न विचार प्रस्तुत है-
इन सभी क्षेत्रों ( प्रशासनिक और न्यायिक व्यवस्था और विविध पत्रकारिता ) में जो भी अधिकारी, प्रतिनिधि, जनप्रतिनिधि व्यवस्था के हिस्सा हैं और इन व्यवस्थाओं को नियंत्रित करते हैं या चलाते हैं उन सभी की प्राथमिकता मानवहितो की संवेदना के साथ सुरक्षा, संवर्द्धन और विकास होना चाहिए। इन सभी व्यवस्थाओं को एक दूसरे का पूरक ही नहीं बल्कि आडिटर भी होना चाहिए। इन सबमे ईमानदारी, संवेदना और पूर्ण निष्ठा के साथ एक अनुशासित क्रम में केवल मानवहितों की रक्षा और विकास के उद्देश्य के लिए यह व्यवस्थाएं जब काय र् करने लगेंगी तब सभी बुराईयां और अपराध पर नियंत्रण पाना सम्भव है।
विविध पत्रकारिता भी इस व्यवस्था का एक अहं स्तम्भ है। व्यवस्था की कमियों को उजागर करने में, विकास कराने में विविध पत्रकारिता की प्रमुख भागेदारी हो सकती है। आम जनमानस, समाज और विविध व्यवस्थाओं के बीच सामंजस्य हेतु बनाने में विविध पत्रकारिता की मुख्य भूमिका हो सकती है। वहीं व्यवस्था की सफलता पर उसका प्रोत्साहन भी करना विविध पत्रकारिता का कर्तव्य भी होना चाहिए।
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’सनातन धर्म‘ से ’सर्वधर्म समभाव‘ की परिकल्पना मानवहित में की जा सकती है-
मेरे विचार से सनातन धर्म से मानवहित में ’सर्वधम र् समभाव‘ की परिकल्पना और अपेक्षा मानवहित में निश्चय ही की जा सकती है। सनातन धर्म आध्यात्मिकता के समावेश के साथ राष्ट्र और विश्व स्तर पर सभी अन्य धर्मो और सामाजिक मान्यताओं को ध्यान में रखते हुए एक सकारात्मक बदलाव लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए सक्षम हो सकता है।
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पूर्व की ’राजाश्रय व्यवस्था‘ और वर्तमान की ’राजनैतिक व्यवस्था‘ का जनमानस में उपयोग –
समय, काल के अनुरूप ’राजाश्रय व्यवस्था‘ की अच्छाइयों , गुणों का, जो कि मानवहित में समय के सापेक्ष लाभप्रद सिद्ध हो, वर्तमान व्यवस्था में समावेश करने का प्रयास करना चाहिए। राजाश्रय व्यवस्थाओं एक परिवार के पास सत्ता और नियत्रं ण होने से राजा की सोच और साथ ही राजपरिवार के अन्य सदस्यों का समीकरण और सोच का प्रभाव निर्णयात्मक हो सकता है। लोकतान्त्रिक व्यवस्थाओं में सत्ता उसी के पास रहेगी जिसे जनमानस चाहेगी और समर्थन देगी। वर्तमान परस्थितियो में राजनैतिक व्यवस्था ज्यादा उपयोगी हो सकती है।
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धर्म/अध्यात्म से राष्ट्रीय और विश्व स्तर पर रचनात्मक मानवीय समाधान की सम्भावना –