श्री श्रद्धानन्द श्रीवास्तव

यदि हम दया, करूणा, प्रेम, आपसी सम्मान रखते हुए कार्य करें तो इस लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है।
(विशेष – उपरोक्त अंश ’वार्षिक समारोह (11.10.20) से साभार लिया गया है।)
  • ’अज्ञानाश्रय ट्रस्ट‘ के वैचारिक मंच  को बहुमुखी सामाजिक मुख्य धारा से जोड़ने का प्रयास –
अज्ञानाश्रय ट्रस्ट के वैचारिक मंच को यदि बेवसाईट पर एक ब्लाग (Blog) के माध्यम से किया जाए तो यह अधिकाधिक लोगों का अपने साथ ला सकेगा।
  • राष्ट्रीय और विश्व स्तर पर ’व्यापक जनमानस और राजनैतिक व्यवस्था के मध्य ’प्रशासनिक‘ और न्यायिक व्यवस्था‘ का अपराध मुक्ति के लिए रचनात्मक स्वरूप – न्याय निष्पक्ष और त्वरित एवं प्रशासनिक व्यवस्था पक्षपात रहित होनी चाहिए।
  • ’सनातन धर्म‘ से ’सर्वधर्म समभाव‘ की परिकल्पना मानवहित में की जा सकती है- हां, सनातन धर्म सर्वधर्म समभाव पर ही आधारित है।
  • पूर्व की ’राजाश्रय व्यवस्था‘ और वत र्मान की ’राजनैतिक व्यवस्था‘ का जनमानस में उपयोग –
मानव जाति के लिए वह कोई व्यवस्था ठीक नहीं है जो भय, पक्षपात पर आधारित है, जिस भी व्यवस्था में हर क्षेत्र में न्याय समानता पर आधारित हो, भय और पक्षपात रहित हो वही व्यवस्था मानव हित में है।
  • धर्म/अध्यात्म से राष्ट्रीय और विश्व स्तर पर रचनात्मक मानवीय समाधान की सम्भावना – हर धर्म/अध्यात्म से परिपूर्ण प्रशासक/न्यायविद से हर क्षेत्र में राष्ट्रीयहित का समाधान हो सकेगा।
हर धर्म/अध्यात्म से परिपूर्ण प्रशासक/न्यायविद से हर क्षेत्र में राष्ट्रीयहित का समाधान हो सकेगा।
– श्री श्रद्धानन्द श्रीवास्तव (आजीवन न्यासी सदस्य)
(विशेष- उपरोक्त वक्तव्य/विचार वार्षिक समारोह/सामान्य बैठक (05.11.21 – 20.11.21) का आवश्यक अंश है। )