भौतिकता और आध्यात्मिकता दो विपरीत बिन्दु हैं, जिनमें समन्वय स्थापित कर जीवन यापन करना एक अत्यन्त साहसिक कार्य है। अत्यन्त विरले साधक ही दोनों के मध्य समन्वय स्थापित कर अपना जीवन यापन करते हैं। दोनों के मध्य समन्वय स्थापित करने के लिए सद्गुरू का निरंतर मार्गदर्शन व ईश्वर की निरंतर साधना व भक्ति आवश्यक है। हमारे जो भी सांसारिक कर्तव्य हैं, उनका पालन हम ईश्वर को निरंतर ध्यान में रखते हुए करें तभी दोनों के मध्य समन्वय स्थापित हो सकता है और साधक अपने सत्मार्ग से कभी विचलित नहीं होगा। जब दोनों के मध्य समन्वय स्थापित होगा, तो विश्व की अधिकांश समस्याएं स्वतः समाप्त होंगी। एक व्यक्ति, अन्य व्यक्तियों से प्रेम व सहयोग करते हुए अपने कर्तव्य का पालन करेगा। विश्व में चल रहे तमाम संघर्ष व विवाद समाप्त होंगे और मानवता स्वार्थ पूर्ण सांसारिकता की बेड़ियों से निकल कर ईश्वर की ओर उन्मुख होगी। इस क्रम में मानवीय समाज स्वार्थ से हटकर सत्य, प्रेम और सत्ज्ञान को प्राप्त करते हुए निरन्तर ईश्वर – मार्ग पर चलेगा।
– श्रीमती प्रीति राजपूत (प्रबंधक न्यासी सदस्य)
(विशेष – उपरोक्त अंश ’वार्षिक समारोह (11.10.20) से साभार लिया गया है।)
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’अज्ञानाश्रय ट्रस्ट‘ के वैचारिक मंच को बहुमुखी सामाजिक मुख्य धारा से जोड़ने का प्रयास –
’अज्ञानाश्रय ट्रस्ट ‘ के विचारों , शोधपरक कार्य व लेखों को प्रकाशन व इन्टरनेट के माध्यम से जनमानस के समक्ष प्रस्तुत किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त ट्रस्ट का कोई सदस्य अपने भाषणों के द्वारा भी ट्रस्ट के विचारों को प्रस्तुत कर सकता है।
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राष्ट्रीय और विश्व स्तर पर ’व्यापक जनमानस और राजनैतिक व्यवस्था के मध्य ’प्रशासनिक‘ और न्यायिक व्यवस्था‘ का अपराध मुक्ति के लिए रचनात्मक स्वरूप – राष्ट्रीय और विश्व स्तर पर लोकतन्त्रात्मक शासन व्यवस्था होनी चाहिए, जो जनकल्याण हेतु कार्य करेगी। यदि सरकारें ऐसा करने मे विफल होंगी, तो जनता के पास सरकार को बदलने का अधिकार रहता है। अन्य शासन प्रणाली , जैसे – राजशाही, तानाशाही आदि व्यक्ति स्वार्थ को महत्व देती हैं, जिस कारण शीघ्र ही निरंकुश हो जाती हैं और जनता के हितों पर कुठाराघात करती हैं। राष्ट्रीय और वैश्विक न्यायप्रणाली भी इस प्रकार की होनी चाहिए जिसमें जनता को शीघ्र न्याय प्राप्त हो तथा अपराधी को सुधार का अवसर प्राप्त हो। न्यायधीश पर व्यवस्था को विश्वास बनाकर रखना चाहिए ताकि जनता को शीघ्र व निष्पक्ष न्याय प्राप्त हो सके। पत्रकारिता के माध्यम से जनता की समस्याओं को व्यवस्था के समक्ष उठाया जा सकता है तथा जनता से ही समस्याओं का निदान/उपचार/ सुझाव मांगे जा सकते हैं, जिन पर शासन व्यवस्था व न्याय प्रणाली द्वारा कार्य किया जायेगा जिससे जनकल्याण का मार्ग प्रशस्त होगा।
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’सनातन धर्म‘ से ’सर्वधर्म समभाव‘ की परिकल्पना मानवहित में की जा सकती है-