अपने जीवन के सभी सामाजिक रिस्तों का समुचित सम्मान, त्याग तथा समर्पण करते हुए, धर्म तथा देशभक्ति का पूर्ण सम्मान करते हुए, ईमानदारी के साथ अपने परिवार, समाज तथा देश का भला करने का प्रयास निरन्तर करते रहें।
(विशेष – उपरोक्त अंश ’वार्षिक समारोह (11.10.20) से साभार लिया गया है।)
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’अज्ञानाश्रय ट्रस्ट‘ के वैचारिक मंच को बहुमुखी सामाजिक मुख्य धारा से जोड़ने का प्रयास –
देश में रहने वाले विभिन्न धर्मावलम्बियों एवं उनके अनुयायियों के मध्य मजहबी शिक्षा से उत्पन्न वैचारिक संघर्षो एवं कट्टरता के समाधान हेतु ट्रस्ट को विचार करना चाहिए।
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’सनातन धर्म‘ से ’सर्वधर्म समभाव‘ की परिकल्पना मानवहित में की जा सकती है-
धर्म एक व्यवस्था है जो एक जीवन को जीने की कला सिखाता है। सनातन धर्म दुनिया के सबसे अच्छे धर्मों से है जो सदा ’ववसुदेव कुटुम्बकम ‘ के नियम पर है और इसमें कई महत्वपूर्ण ग्रंथ हैं जो हमारे जीवन को दिशा देती है। हमें इस धर्म की महत्ता को दूसरों तक जाकर पहुंचाना चाहिए।
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पूर्व की ’राजाश्रय व्यवस्था‘ और वर्त्तमान की ’राजनैतिक व्यवस्था‘ का जनमानस में उपयोग –
भारत एक महत्वपूर्ण देश है, पर स्वार्थ एवं लालच की वजह से हमारे नेता भी लोक सेवक इत्यादि से मिलकर व्यवस्था को ध्वस्त कर रहे हैं, जिनके कारण 70 साल बाद भी हम विकसित नहीं हो पा रहे हैं। हमारी व्यवस्था हमें ईमानदारी की तरफ प्रेरित करे तो हम अपना सपना साकार कर सकते हैं। आज अमीर ज्यादा बनने के लिए गलत कार्य कर रहे हैं और निर्धन अपने जीने के लिए। मध्यम वर्ग जो हर तरफ से पीड़ित है उसे सही मार्ग दर्शन तथा प्रेरणा अत्यन्त आवश्यक है।
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धर्म/अध्यात्म से राष्ट्रीय और विश्व स्तर पर रचनात्मक मानवीय समाधान की सम्भावना –
भारत एक महत्वपूर्ण देश है, पर स्वार्थ एवं लालच की वजह से हमारे नेता भी लोक सेवक इत्यादि से मिलकर व्यवस्था को ध्वस्त कर रहे हैं, जिनके कारण 70 साल बाद भी हम विकसित नहीं हो पा रहे हैं। हमारी व्यवस्था हमें ईमानदारी की तरफ प्रेरित करे तो हम अपना सपना साकार कर सकते हैं। आज अमीर ज्यादा बनने के लिए गलत कार्य कर रहे हैं और निर्धन अपने जीने के लिए। मध्यम वर्ग जो हर तरफ से पीड़ित है उसे सही मार्ग दर्शन तथा प्रेरणा अत्यन्त आवश्यक है।
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धर्म/अध्यात्म से राष्ट्रीय और विश्व स्तर पर रचनात्मक मानवीय समाधान की सम्भावना –