भौतिकता और आध्यात्मिकता के मध्य मानवता के विकास हेतु मानवीय मूल्यों, यथा – अहिंसा, करुणा, क्षमा, सहिष्णुता, परोपकार, भाई चारा, प्रेम, कृतज्ञता आदि के विकास हेतु धार्मिक ग्रंथों ’गीता/मानस’ आदि का स्वाध्याय एवं सकारात्मक चिन्तन करने से मानवीय दृष्टिकोण का विकास कर व्यवहार में लाया जाए ताकि जीवन को सरल एवं सुगम बनाया जा सके।
(विशेष – उपरोक्त अंश ’वार्षिक समारोह (11.10.20) से साभार लिया गया है।)
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’अज्ञानाश्रय ट्रस्ट‘ के वैचारिक मंच को बहुमुखी सामाजिक मुख्य धारा से जोड़ने का प्रयास –
देश में रहने वाले विभिन्न धर्मावलम्बियों और उनके अनुयायियों के मध्य, मजहबी शिक्षा से उत्पन्न वैचारिक संघर्ष एवं कट्टरता के समाधान हेतु ट्रस्ट के वैचारिक मंच को मुख्यधारा से जोड़ने हेतु कार्य करने के लिए विचार किया जाय।
राष्ट्रीय और विश्व स्तर पर ’व्यापक जनमानस और राजनैतिक व्यवस्थ् के मध्य ’प्रशासनिक‘ और न्यायिक व्यवस्था‘ का अपराध मुक्ति के लिए रचनात्मक स्वरूप –
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’सनातन धर्म‘ से ’सर्वधर्म समभाव‘ की परिकल्पना मानवहित में की जा सकती है-
सनातन धर्म में मानव को अपने आत्मतत्व को जानने हेतु प्रयासरत् होना चाहिए तथा इसके लिए महापुरुषों की वाणी तथा धामि र्क ग्रंथो के साथ – साथ श्रीमद भागवत योग का पठन पाठन /मनन/चिन्तन एवं यथासम्भव परिपालन करना चाहिए ताकि मानव आत्मसाक्षात्कार हेतु अग्रसर हो सके। इस पथ परअग्रसर समाज के लोगो में ही ’सर्वधर्म समभाव‘ की परिकल्पना मानवहित में की जा सकती है।
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पूर्व की ’राजाश्रय व्यवस्था‘ और वत र्मान की ’राजनैतिक व्यवस्था‘ का जनमानस में उपयोग –
पूर्व राजाश्रय व्यवस्था में भी राज्यविस्तार की कामना के कारण राजाओं में अहंकार की भावना के साथ ईर्ष्या द्वेष पूर्ण वातावरण होने पर प्रायः संघर्ष पूर्ण/युद्ध होते रहते थे। कभी – कभी कुछ राजाओंके अहंकार का सामना होने पर उन्हें ऋषि – मुनियो ं (यथा – महर्षि वशिष्ठ एवं राजा विश्वरथ) का कोपभाजन बनना पड़ा। वत र्मान लोकतन्त्रात्मक राजनीतिक व्यवस्था , यदि ईमानदारी से सभी लोग मिलकर संचालित करें तो श्रेष्ठ है, परन्तु जब नेताओ ं एवं अपराधियों के गठजोड़ से सत्ता हासिल करके अधिकारियों को समर्थन करने हेतु विवश किया जाये तो स्थिति बद से बदतर हो जाती है।
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धर्म/अध्यात्म से राष्ट्रीय और विश्व स्तर पर रचनात्मक मानवीय समाधान की सम्भावना –